राजा भैया की वापसी

राजा भैया की सपा सरकार में वापसी ने यह साफ़ ज़ाहिर कर दिया हैं की उत्तर प्रदेश में की राजनीति अभी भी जाति मतभेदों पर टिकी हुई हैं . राजा भैया की वापसी से यह तो तय हैं की ठाकुरों के वोट सपा सरकार की झोली में ही गिरेगा .२०१४ के निर्वाचन के वोट बैंक की राजनीती तो अभी से ही आसानी से देखि जा सकती हैं हालांकि इस पहलु पर बसपा सरकार की प्रतिक्रिया देखने युग्य होगी . उत्तर प्रदेश की राजनीती हमेशा से ही दिलचस्प रही हैं , खासकर राजा भैया का पहलू जो हमेशा से ही अपने कई कारनामो के चलते सुर्खियो में रहे . फिर भी किसी भी हालात में सपा सरकार ने राजा भैया का हाथ नहीं छोडा. २०१२ के विधानसभा चुनाव के दौरान दाखिलकिये गए हलफनामे के मुताबिक उनके खिलाफ आठ मामले लंबित हैं . इनमे हत्या की कोशिश , हत्या की इरादे से अपहरण , डकेतीजैसे मामले शामिल हैं . साथ ही २००२ में उन पर पोटा कानून भी लग चूका हैं . इसके अलावा उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एक्ट के तहत भी उनके खिलाफ मामला चल रहा हैं . हालाँकि डी.एस.पी. जिया –उल-हक मर्डर केस में राजा भैया को क्लीन चिट मिल गयी हैं . लेकिन सवाल यह उठता हैं की आखिरकार ग़ैरक़ानूनी मामलो में शामिल होने के बावजूद भी राजा भैया जैसे लोग हमारी राजनीति में शामिल हैं , जिसके चलते हमारे देश का राजनैतिक ढाचा खोकला होता जा रहा हैं . 

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